अरे बहन कितना भी अपने मन की करले आजकल के बच्चे। लेकिन अलग बिरादरी की लड़की को सास-ससुर कभी दिल से नहीं अपनाते। वह औरत बोलती हुई ट्रेन के उस भरे डब्‍बे में लोगों को अपनी कोहनी अढ़ाती हुई आगे जाकर खड़ी हुई।
दूसरी आवाज़ तपाक से-सही कह रही तू।
पहली- हमारी पड़ोस में जो बहु आई है उसका चेहरा आजतक नहीं देखा। न कहीं आती-जाती देखी। न लड़के के साथ न सास के साथ। छुपा-छुपा कर रखते है उसे।
दूसरी-क्या करे रखना ही पड़ेगा । बच्चों ने तो करली अपने मन की। इज़्ज़त थोड़े मिलती है ऐसी लड़की को दूसरे के घर। कितना भी करले रहेगी ग़ैर-सी। जानवर से मोह हो जाता है बहन मेरी, बहु से नहीं होता।
पहली-सही कह रही है बहन।
ट्रेन में भीड़ के कारण उनका चेहरा चेहरा देख पाना मुश्किल था लेकिन उनकी बातों की बू आगे से पीछे के कर्म्‍पाटमेन्‍ट तक आ रही थी जहा मै खड़ा था।
तभी मुझसे रहा नही गया और मै भी उस भीड़ को दबाते हुये आगे बढ़कर बोला- दूसरे के घर इज़्ज़त क्यों ख़राब कर रही हो जाकर बोल दो उसके घर। जिस दिन बहु-बेटी ताव में आ गई तो घर की इज़्ज़त धूल में नजर आएगी। एक और बोली-कल को उसकी बेटी ऐसा कर बैठे तो वो क्या करेंगे दुःखी रहने देंगे अपनी बेटी को।
पहली महिला बोली-अरे भइया मुंह आई बात रूकती थोड़े है। बच्चे तो नादान है गलती कर जाते है माँ बाप को भुगतना पड़ता है। हो सकता है कल आप भी ऐसा कर ले तो आप के माता पिता क्‍या इज्‍जत रह जाएगी आखिर जाट बिरादरी कुछ तो होती है।
फिर मै उस महिला को समझाते हुये मैने का कि आज के इस बदलते दौर में जात-बिरादरी पूछती है , नाटकों में ध्यान कम दिया करो बहनजी। हक़ीक़त को सोचा करो।
मै अपनी बात ख़त्म करता इससे पहले ही गाड़ी ब्रेक लग चुकी थी और बाक़ी चन्द लोगों के साथ वो दो औरतें भी उतर गई।
 गाड़ी की रेस के साथ अपनी बात ख़त्म की ऐसी सोच की औरतें न अपना घर बना पाती हैं न आस-पड़ोस का बनने देती है न अपने बच्चों का।
दो-चार की मुस्कुराहट की ख़ुशबू  के साथ पुरा ट्रेन का डब्‍बा महका दिया।

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