उस दिन शहर के ब्रेकर न जाने कहाँ छुप गये थे,
ट्रैफिक भी कही जाम नही था।
वो आवारा गायों का झुण्ड पता नही कहा चला गया था।
कौन कहता हैं, सड़क पे गड्डे बहुत पड़ते हैं।
क्यूँ उस दिन रास्ते इतने छोटे मालूम पड़ रहे थे।
उस दिन सब कुछ इतना क्यूँ बदल सा गया था।

हाँ,
 
उस दिन कोई पहली बार वो भी कोई खास बैठ गयी थी,
मेरी बाइक की पिछली सीट पर।

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