जूते भी साफ हो गया एक जिंस था उसे भी धो डाला , एक शर्ट तथा एक टी शर्ट थी उसे भी धो के सूखने को डाला था लगभग वही दोपहर और सुबह के बीच का समय लगभग 11 बजे ये सोच कर की शाम तक सूख जाएगा, और हुआ भी ऐसा सुख भी गया। शाम तक कपड़े वैसे ही छत पर झूल रहे थे। कही जाने की तैयारी में कपडे उतारना भूल गया हो गयी रात और दोस्तों कि गचरपचर मे मेरा ध्यान ही उतर गया कि कपडें अभी तक वही लटके हैं। यहाॅं तक तो ठीक था। सुबह ही हमको पकडना था ट्रेन। सुबह उठा नहाया धुला और जैसे ही कपडे पहनने की बारी आई तो याद आया, वो तेरी की कपड़े तो लटक रहे होगे ................ भागा-भागा गया छत पर तो देखा कि शर्ट पड़ोसी के छत परहुयी बवाल अब क्या, करूँ। एक तो किराये का मकान ऊपर से पड़ोस वाली आन्टी पूछो हो गयी किच-किच, फिर ध्यान जूते पर गया वो गायब, बचा था तो केवल एक टी शर्ट एक तो ऐसे ही रात को देर से सोये थे और ट्रेन के समय से एक घंटा पहले नीद खुली थी और ऊपर से ये सब बवाल। पड़ोस वाली आन्टी का दरवाजा जैसे ही खुलवायां सुबह का नाश्ता तो वही उनकी बातों से हो गया। अब बारी जूते की, भाई साहब मै अपने लाज के 12 कमरें की दरवाजा सुबह-सुबह ही खुलवा दिया पर जूता का कोई अता-पता नहीं चला सब ने यही कहा मेरे पास नही है, मैने तो आप का जूता देखा तक नही। अब क्या करूं दूसरे जूते भी नही थे बचा था तो केवल वही एक सैंडिल जिसकी हालत पूरी तरह खराब हो चूकी थी आखिरकार उसी का सहारा लेना पड़ा। पर आज तक हमें ये नही मालूम पडा की मेरे धूले धूलाये जूता का क्या हुआ। छत के अन्दर समा गया या आकाश निगल गया या पडोस वली आन्टी ले गयी या मेरे ही लाज का कोई लडका ले लिया अगर आप को कोई सुराक मिले तो बताना

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