ये कैफे वाले भी न मन तो कर रहा है कि सहर से सारे कैफे वाले को आज एक साथ गोली मार दूं । कितने आज भाव दिखा रहे थे मानो कि अब उनसे बडा कोई इंजीनियर ही नही है। अगर काम न करना हो तो इन को बहाना बनाते देर नही लगता मानो हमे तो कुछ आता-जाता ही नही है हम बेवकूफ है जो इनकी शरण मे जा गिरे।

          हुआ क्‍या था यार कुछ नही एक छोटा सा काम था वो भी किसी और ने हमें ये सौंपा था कि मेरा फाॅर्म भर के इलाहाबाद बैंक से चालान बनवा देना, फाॅर्म भर के चालान को पेनड्राइव मे भर कर निकल लिया । मैने सोचा कि बैंक के पास वाले कैफे से प्रिन्‍ट कराके वहीं चालान बनवा लुगां । मैंने भी सही ही सोचा, एक कैफे खराब हो सकता है तीनों नहीं क्‍योकि बैंक के पास में ही एक के बाद एक लगातार तीन कैफे हैं । एक के यहां गया तो बोला की लाइट नहीं है, दूसरा बोला इनवर्टर चार्ज नही है और तीसरा तो अजीब ही बोला, कहा कि नही हो पाएगा मैने पूछा क्‍यों, तो कहाकि बस ऐसे ही, मै बहस न करने की सोच कर वहां से निकल लिया कि थोडी दूर पर एक और कैफे है वहा करा लूगां। वहा गया तो पता चला की दुकान का मालिक कहीं गया है थोडी देर इन्‍तजार करने पर भी नही आया, तो मै वहां से निकल लिया और कुछ दूर जाके पता किया तो वो बोला हो जाएगा, कितना पेज है, मैने कहा एक पेज, तो वो बोला नही होगा मै 10 पेज से निचे प्रिंट नही करूगां। कसम से मेरी तो ये इच्‍छा हुआ कि उसका गला वही दबा दे पर ऐसा नही कर सकता ये मेरा काम नही है सोच कर निकल लिया। कुछ दूर जाने के बाद एक कैफे दिखा, बडे आस के साथ वहा गया और बडे प्‍यार से कहा कि भैया एक पेज पेनड्राइव से प्रिंट करनी है तो वो बोला कि मेरा ऐन्‍टी वायरस अपडेट नहीं हैं मैं अपने कम्‍प्‍यूटर में पेनड्राइव नही लगा सकता, मेरा मन किया की उसका कम्‍पयूटर व‍ही तोड़ डाले, थोडी दूर और आगे बढ़ा तो देखा कि ये तो अपने प्रिंटर का रिपेयरिंग करवा रहा है।
         इन कैफे वालो की बहाने बाजी सुन-सुन के दोपहर के चिलचिलाती धूप मे लगभग उस बैंक से सात किलोमीटर दूर निकल चुका था अौर डर ये भी था कि शनिवार का दिन है, बारह बजे तक बैंक खुला रहता है कहीं बैंक बन्‍द न हो जाए। अब तो यही मन कर रहा था की वापस घर चले और उस महारानी को जिनका काम है बोले की मेरे बस का नही है। यही सोच कर आगे बढ़ रहा था कि एक कैफे दिखा, त‍ो सोचे कि अगर यहां नही होगा तो वापस चले जाऐंगे। वहां जाने के बाद देखा तो एक अंकल जी टाइप के बुढ़वु थे कहे कि हम नही कर पाऐंगे अगर आप कर लेंगे तो कर लीजिए मैने कोई देरी न करते हुए फट से पेनड्राइव कम्‍प्‍यूटर मे धुसेड़ दिया और फाइल ओपेन होते ही Ctrl+P  बटन दबाया और पिंट मेरे हाथ मे थैंक्‍स प्रभु कहते निकल लिया ।
        सच मे भाई अगर दूसरे कि मदद करने मे इतनी जहमत उठानी पडे तो कसम से मदद के नाम से रूह कांप जाएगी।

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