मानव चाहे कितना ही योग्य और कुशल क्यों न हो, अगर उसे अकेले छोड़ दिया जाए तो वह जी नहीं सकता। कोई अपने सामान्य दिनों में कितना ही बलशाली और स्वतंत्र क्यों न हो, जब उसे कोई समस्‍या या किसी प्रकार की बीमारी सताती है तो उसे दूसरों से मदद लेना ही पड़ता है। भौतिक घटनाओं का सूक्ष्मतम रूप भी परस्पर एक दूसरे के सहयोग से ही चलता है। जैसे सागर, बादल, जंगल, फूल सभी  रूप एक दूसरे पर निर्भर हैं। अगर वह न हों तो एक दूसरे के बिना वे घुल जाते हैं और सड़ जाते हैं इसलिए हमें एक सच्चे उत्तरदायित्व की भावना और दूसरों की भलाई के लिए सच्ची चिंता की आवश्यकता है। मनुष्य कोई मशीन की बनाई वस्तु नहीं हैं। यदि ऐसा होता तो मशीनें स्वयं हमारा दुःख दूर कर देती और जरूरतों को भी पूरा कर सकती।
      यदि हम रोजमर्रा के जीवन को ही देखें तो पाएंगे कि कोई मानवीय संवेदनाओं से भर कर बोलता है तो सुनने में हमें आनंद आता है और हम उसी के अनुसार प्रतिक्रिया देते हैं। दूसरी ओर, यदि कोई व्यक्ति बहुत ही भावशून्य होकर या क्रूढ़ता से बोलता है, तो हम शांत हो जाते हैं और चाहते हैं कि उस बातचीत को शीघ्र ही समाप्त कर दे।
      इसलिए मेरा मानना है‍ कि जिस दिन से हम पैदा हुए हैं, मानवीय प्रेम के प्रति हमारी आवश्यकता और सहयोग दोनो हमारे रक्त में है। मेरा विश्वास है कि प्रेम की आवश्यकता के बिना कोई पैदा नहीं होता। और न ही उसके बिना रह सकता है।
                 प्रेम और संवेदना जितना बांटें वह बढ़ती है।

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