जब आप की यात्रा की टिकट कम्‍पलीट न हो या आप का टिकट आप के अनुरूप न हो तो वह यात्र वाहियात बन जाती है आप का कोई सीट अाप की अपनी नही होती है तब एक ही बात दिल को तसल्‍ली देने के लिए मन मे आती है कि हमारा क्‍या अब हम तो अजाद है कही भी बैठ लेगें ट्रेन का सारा बर्थ अपना ही है, यही सोच ही रहा कि ट्रेन की खबर हो गयी और कुछ ही देरी में प्‍लेटर्फाम पर आ टिकी। हर कोई जल्‍दी मे था जिसका जिसका टिकट कम्‍पलीट था की कही उनकी सीटों पर हम जैसो का पहरा न हो जाए और हम जैसे लोग से अन्‍दर का नजारा देख रहे थे कुछ ही देर बाद हमें भी ट्रेन में चढना पड़ा क्‍या करें ट्रेन के छूटने का वक्‍त जो हो गया था । अन्‍दर घुसते ही मैने भी अपनी सीट तलासनी शूरू कर दी वैसे मेरा तो कोई सीट न था इस फिराक में था कि कोई हम पे दया दिखा के बैठा ले एक जगह मील भी गया । जहां एक सादी शुदा महिला अपने पति था दो बच्‍चों के साथ थी और दूसरी कोई परिवार था जो काफि बुजुर्ग थे और साथ में उनके एक कुवारी महिला थी। मैने सोचा कि यही जगह अपने यात्रा बिताने के लिए थीक होगा मैने उन सब से बैठने के लिए थोडी जगह की आग्रह की और बिना किसी परेशानी के मिल भी गयी। मेरी यात्रा शुरू हो चूकि थी लगभग एक डेढ घंटे तक तो कोई लचचल नही हुयी लेकिन कुछ ही देर बाद जो महिला अपने बच्‍चों के साथ्‍ा थी वो पुछ पडी आप का कौन सा सीट है, कोई नही मैने झट से जबाब दे दिया। कहा तक जाना है जी नागपूर तक। इतना सुनने के बाद वो खामोस हो गयी और मै भी ।उस महिला के कहने के दो बच्‍चें थे मगर पता नही ऐसा हमको लगा की वह प्‍यार केवल एक ही से करती थी अपने बडे लडके से क्‍योकि उसको जो भी खाने के लिए देती तो प्‍यार से मुह मे खिलाती और दूसरे छोटे को एक चाटा मार के हाथ मे पकडा देती और उसका बाप उसको खिलाता मैने कई मरतबा उस महिला को ऐसा करते देखा वो पता नही ऐसा क्‍यो करती थ्‍ाी ये जनने के लिए उससे पूछा भी तोे वो बडी आसानी से मुस्‍कुराते हुए बातो को टाल गयी। लेकिन जो भी हो ये महिला मेरे लिए बहुत दयालु साबित हुयी क्‍योकि वो पूरी  सीट हमको रात के वक्‍त सोने के लिए दे दी । मै भी आंख बन्‍द कर के भगवान को धन्‍यबाद देते हुए सो गया सोचा की जो भी अपना काम तो बन गया और सुबह होते ही मै देखा की महाराष्‍ट्र की सीमा में प्रवेश कर चुका थ्‍ाा कुछ ही घंंटो बाद मेरा स्‍टेशन आने वाला था तभी सोचा की एक फोन कर लू जहा जाना है बता दू की मै कुछ देर बाद उतने वाला हूं तो उधर से जबाब आया की मै तो कल रात को ही दिल्‍ली निकल चुका हूं मेरा तो दिमाग काम ही करना बन्‍द कर दिया। अब मै अपना आशियाना कहा जमाउगां। कोई बात नही वहीं चलते है जहा जाना है। नागपूर से एक स्‍टेशन और आगे वर्धा लगभग एक घंटे का रास्‍ता था ट्रेन मे भगवान से मनाता रहा की कोई टीटी ना आजाए वरना खमोखा फाई देना पडता क्‍योकि मेरा टिकट तो नागपूर की था सही सलामत उतर भी गया वर्धा स्‍टेशन और जैसे ही इधर उधर निगाहे फेरी और एक सज्‍जन व्‍यक्ति देख कर बाहर निकलने का रास्‍ता पूछा,,  तो टिकट मांग दिया वो टीटी था जो कि साधारण पोशाक मे था ये कहा फस गया मन ही मन कहते हुये टिकट दिखाया वो मेरा टिकट देख कर कहा कि ये नागपूर तक का ही है अब आप को फाईन देनी पडेगी। इतना कहते ही 370 रू की रसीद फाड दी उसने और बाइजत्‍त बाहर का रास्‍ता दिखते हुए गेट के बारह तक छोडा।
  मैने उसको धन्‍यबाद कहते हुये निकल गया ।

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