केवल निर्णय लेने से ही अधिक से अधिक सजग या स्पष्ट हुआ जा सकता है, जिससे हम  तीक्ष्ण बुद्धि के बन सकते है अन्यथा सुस्ती तो बरकरार ही रहेगी |लोग न जाने कितने लोगों से सलाह लेते है, इसलिए नहीं कि वे एक महान खोजी है, पर इसलिए कि वे निर्णय लेने में असमर्थ होते हैइसलिए वे एक को छोड़ कर दूसरे की ओर लगातार राय या सलाह लेने जाते है यह उनका प्रतिबद्धता से बचने का मार्ग है|  जब हम किसी मित्र या सहयोगी के पास जाते है तब इससे भी बड़ी चुनौती खड़ी होती है, हमे निर्णय लेना होता है; और निर्णय अज्ञात के पक्ष में लेना होता है निर्णय समग्र और अंतिम अपरिवर्तनीय होता है। जितने जल्दी निर्णय लिया जा सके उतना ही अच्‍छा होता है। स्थगित करना बिलकुल मूढ़ता है। कल भी हमे निर्णय लेना ही होगा, तो आज ही क्यों नहीं? और क्या कल हम आज से ज्यादा समझदार होओगे? किसे पता, कल आए न आए! अगर निर्णय लेना ही है तो अभी लेना होगा।

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