आज से करीब 7 साल पहले जब मै अपने पडोस के बुआ को लेकर झांसी से बनारस बाय ट्रेन आ रहा था तभी रास्‍ते में एक युवती अपने माता के साथ  हमारे डिब्‍बे में चढी और हमारे कम्‍पार्टमेंट के मेरे सीट पर आ पहुची और मैने इंसनियत के नाते उसको अपने सीट पर बैठने के लिए जगह दे दिया । शुरू मे वो अपने माता के साथ इतना मशगूल थी की दो तीन घंटे कैसे बीत गये पता ही नही चला। रात को जब ग्‍यारह बजा तब सभी लोग सोने लगे। डिब्‍बे के दोनो मुख्‍य दरवाजे पर एक एक बल्‍ब जल रहा था। बाकी सभी ने अपने पास की लाइटे आफ कर दी थी। वो और उसकी माता जी सीट के कोने पर बैठे बैठे सोने लगी। मुझे नींद नही आ रही थी। और जहा तक हमे मालूम था की बुआ जी सो गयी थी। मैने उनसे दो चार सवाल किये वो हा हू में जबाब देती रही शायद उसकी मां उसके साथ थी और  वो एक अजनवी लडके से बात करती उसके मा को अच्‍छा नही लगता। फिर उनकी माता जी को मैने अपने बुआ की सीट पर उनके साथ सोने को बोला। और वो अराम से वहा सो गयी। फिर उनको हम अपने सबसे उपरी बर्थ पर उनको बैठने को आग्रह किया वो मान भी गई। फिर हम दोनो ने लम्‍बी बातें किया। उस दिन उस सफर में हम दोनो नही सोये। बातो ही बातो में हम दोनो ने एक दूसरे का फोन नम्‍बर और पता दिये। शुबह  कब हुआ पता ही नही चला। और वो इलाहाबाद स्‍टेशन पर उतर गयी एक दूसरे को बाय किया। लेकिन वो पल हमारे और उनके लिए आज भी यादगार पल रहा ।  आज भी हम एक दूसरे से फोन तथा शोशल मीडिया से जुडे हुए है। मगर आज भी मन के किसी कोने में उनके लिए एक दोस्‍ती का भाव है जिसे चाह कर भी मै उसे भूला नही पाया। रास्‍ते का रिश्‍ता मगर मन से एक ही दुआ निकलती है वो जहा भी रहे खुश रहे।

एक टिप्पणी भेजें

 
Top