समझ नही आता कि इस 21वीं सदी में निर्मल बाबा,स्‍वामी ओम, मन्नत बाबा जैसे लोगो का भी टीवी चैनल में प्रसारण होता वो न्यूज चैनल में। आखिर इतने ढोंगी बाबा आज भी राज कैसे कर लेते।
ऐसा लगता कि आज भी भारत रूढीवादी और ढोंग में अंधा है।
अंधा तो अंधे को रास्ता दिखा रहा।
नोट- ढोंग ,अन्धविश्वास लोगो के डी.एन.ए. में घुल चुके है ढोंग का साम्राज्य बनने में समय लगा था तब उसे मिटने में भी समय लगेगा ! 

इन ढोंगीयो ने ही इस देश को गरीब, भ्रष्टाचारी बनाया है, लोगो को अपने आप से विश्वास उठ गया है और ऐसे बाबाओ काे चुनते है! जो लोग कहते की हमारा इतिहास आदर्श था जो आदर्श के गुण गाते वे ही आदर्शों से बहुत दूर निकल चुके है, अतीत की आदर्शवादी के गुण गाकर तो अपनी अनेतिकता छुपा रहे है जब खुद गुणहीन होते है तब दुसरो के गुणगान गाकर अपने अवगुण छिपाते है !
इस प्रकार के बाबा धन, वैभव को निरर्थक बनाकर खुद उनसे धन एकत्र करके मालामाल होते है और दूसरे को धन रखना संसारिक बीमारी बताते है।
कई लोग ऐसे भी होते है जो सीधे साधे होते है उन्‍हे नही पता हाेता है उनकी अतंरतम आंखे इन्‍हे नही देख पाती है कि ये बहुत बडे वाले ढोंगी है जो गुमराह करते हे। लेकिन सीधे साधे कुछ गरीब से जैसे तैसे अपना किराया भाडा लगाकर इनके पास जाते है ओर झूठ की बुनियाद से लौट आते है झूठा/खोखला जबरना का विश्‍वास बनाके । और इन्‍हे बताया जाता है कि आप विश्‍वास रखे भले दिल गवाही माने या न माने। 

काम हो गया तो कहेगे कि आपके विश्‍वास और कर्म का फल है । और नही हुआ तो कहेगे आपका विश्‍वास या कर्म अभी मजबूत नही है। 
वेसे एक सच ये भी है कि ढोंगियो के लिए भी ढोंगी ही बने है। पर दुख तब होता है जब इनके चक्‍कर मे कुछ सीधे साधे लोग भी चपेट मे आ जाते है।

सार:- जब तक लोग धर्म और अध्यात्म को ठीक ढंग से जान नही लेते तब तक ढोंगी बाबाओं का दुकान खूब चलेगा। धर्म और अध्यात्म एक जीवन शैली है इस जीवन शैली की खासियत ये है कि आप किसी सिद्धान्त, मान्यता धारणा को आँख बन्द कर अनुशरण न करे। जो भी आध्यात्मिक व् धार्मिक शब्दावली है उसे आप अन्तरप्रज्ञा से जाने समझे। ओशो ने पाखंडी बाबाओं के प्रति लोगों को खूब अगाह किये सचेत किये इसलिए तत्कालीन बाबाओं ने ओशो के खिलाफ खूब प्रचार प्रसार किये। कैसे पाखण्डी बाबा की पहचान करे इसके बारे में ओशो ने खुल कर अपने प्रवचन में निर्देश दिए हुए है। वह बार बार ये ज़रूर कहते कि मै जो बोलता हूँ उसे आप सीधा सीधी स्वीकार न करे बल्कि मेरे कथन पर अपना विचार करे चिंतन मनन के बाद जो निष्कर्ष पाते है उस पर आप अपना निश्चय रखे। अपनी प्रज्ञा विचार को निखारिये तब पाखण्डी बाबाओं के फेर में नहीं पड़ेंगे बल्कि उनका भांडा फोड़ ही करेंगे।

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