युवाओं
का देश कहे जाने वाले
भारत
में शिक्षित बेरोजगारों की एक बड़ी फौज खड़ी हो गई है। हर साल तीस लाख युवा स्नातक व स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करते
हैं। इसके बावजूद देश में बेरोजगारी दिन दूनी-रात चौगुनी बढ़ रही है। हमारी शिक्षा प्रणाली
दोषपूर्ण है। न तो वह अपने निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करती है और न तो
व्यवहारिक ज्ञान प्रदान करती है। परिणामतः छात्रों का सर्वांगीण विकास नहीं
हो पा रहा है। उसका उद्देश्य केवल परीक्षा उत्तीर्ण करके डिग्रियां प्राप्त
करना रहा गया है। क्या यह यही भारतीय
शैक्षणिक पद्धति है जिसने भारतीयों को धर्म और अध्यात्म तो खूब सिखाया पर उसी भारत के युवाओं को
उनकी काबिलियत सिद्ध करने का हुनर न सिखा पा रही है
क्या आपने कभी
उस युवा की आंखों में देखा है, जो बेरोजगारी की आग में अपनी
डिग्रियों को जलाकर राख कर देने के लिए विवश है? क्या आपने कभी उस युवा
की पीड़ा का अनुभव किया है जो दिन में दफ्तरों के चक्कर काटता है और रात
में अखबारी विज्ञापनों में रोजगार की खोज करता है? घर में जिसे निकम्मा कहा
जाता है और समाज में आवारा। जो निराशा की नींद सोता है और आंसुओं के खारे
पानी को पीकर समाज को अपनी मौन व्यथा सुनाता है। बेरोजगारी हमारे देश को
दीमक की तरह चाट रही है। इस समस्या के कारण ही अन्य समस्याएं जैसे अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार, अराजकता, आतंकवाद
आदि उत्पन्न हो रहे हैं। जैसे कि कहा जाता है, खाली दिमाग शैतान का घर होता है।
हाल ही में उच्च शिक्षा के लिए विश्व के ख्यात
विश्वविद्यालयों, पाठ्यक्रमों, छात्रों व रोजगार के अवसरों पर हुए सर्वे ने
भारतीय उच्च शिक्षा की
वास्तविकता उजागर की है। इस सर्वे से साफ होता है कि आज भारत पढ़े-लिखो का अनपढ़ देश बन चुका है। हमारी तामझाम वाली उच्च शिक्षा हकीकत से कोसों दूर है, जबकि हम अपनी झूठी शान की तूती ही बजाते फिर रहे हैं। हम अमेरिका, इंग्लैंड, चीन व जापान जैसे देशों की
तुलना में कहीं भी खड़े
दिखाई नहीं देते, जबकि इन देशों में छात्रों
को न तो हाथ पकड़कर लिखना
सिखाया जाता है और न ही वहां के पाठ्यक्रम भारत की तरह बेबुनियादी होते हैं। बहरहाल, युवाओं के लिए भारतीय उच्च
शिक्षा पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है।
इसका एक महत्वपूर्ण कारण यह भी रहा
कि देश में शिक्षा सुधार के लिए कोई उपाय नहीं किए गए। देश में 650 शैक्षणिक संस्थान व 33,000 से
ज्यादा डिग्री देने
वाले कॉलेज हैं लेकिन इनमें दशकों पुराने
पाठ्यक्रमों का आज भी उपयोग किया जा रहा है। शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए न तो हमारी सरकार ध्यान
दे रही और न ही यूजीसी तथा विश्वविद्यालयों का आला प्रशासन ध्यान दे रहे है नतीजतन
सारी की सारी घिसी-पिटी शिक्षा
कॉलेजों के हवाले कर दी गई है जिससे ये कॉलेज अपनी मनमानी कर पाठ्यक्रमों को निपटा
देते हैं। और छात्र को पर्याप्त ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता।
शिक्षा के क्षेत्र में राजनीति का भी महत्वपूर्ण योगदान
रहता है भारत की असंवेदनशील राजनीति को आरोप-प्रत्यारोप
के अलावा अन्य किसी विषय पर विचार करने का समय ही नहीं है। देश का एक इतना बड़ा तबका शिक्षित होते
हुए भी आज बेरोजगार है, इसका कारण आपस मे राजनीति झडप है जो समय के साथ रोजगार के अवसर नही
मुहैया करा रही। सरकारी न्यूक्तियो पर भी हमारी भारतीय राजनेता अपने राजनीति दाव
खेलने से बाज नही आते। जो भारत
की विकासशीलता में भी बाधा बना हुआ है। यहां बेरोजगारी की स्थिति किसी महामारी से कम नहीं है। देश के शीर्ष अर्थशास्त्रियों ने भी माना है कि देश
में बढ़ती गरीबी युवाओं
में बढ़ती बेरोजगारी का ही नतीजा है। यदि भारत
को आर्थिक मजबूती देनी है तो हमारे सरकार को कहीं से भी भारतीय युवाओं को रोजगार मुहैया कराना होगा न की यहां पर राजनीति करनी होगी। कुल मिलाकर सभी को शिक्षा के प्रति अपनी झूठी शान को हटाकर जमीनी स्तर पर कार्य करना होगा, और सरकार को शिक्षा और रोजगार अवसरो पर राजनीति न करके देश के बेरोजगार
युवाओ और शिक्षा प्रणली के बारे सोचना होगा तभी जाकर देश का इतना बड़ा तबका पूर्ण
रूप से साक्षर होगा व उसे रोजगार के बेहतर अवसर भी प्राप्त होंगे।
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