यह बहुत मजे की बात है कि जीवन के असम्मान के कारण प्रेम अशोभन मालुम पडता है।क्योंकि प्रेम जीवन का गहनतम फूल है।अगर दो आदमी सडक पर लड रहे हों तो कोई नहीं कहता अश्लील है।लेकिन दो आदमी गले में हाथ डालकर एक वृक्ष के नीचे बैठे हैं,तो लोग कहेंगे ,अश्लील है! हिंसा अश्लील नहीं है,प्रेम अश्लील है! प्रेम क्यों अश्लील है? हिंसा क्यों अश्लील नहीं है? हिंसा मृत्यु है,प्रेम जीवन है।जीवन के प्रति असम्मान है और मृत्यु के प्रति सम्मान है।
देखिए, कितनी हैरानी की बात है! युद्ध की फिल्में बनती है,कोई सरकार उन पर रोक नहीं लगाती ।हत्या होती है,खून होता है फिल्म में,कोई दुनिया की सरकार नहीं कहती कि अश्लील है।लेकिन अगर प्रेम की घटना है तो सारी सरकारें चिंतित हो जाती हैं।सरकारें तय करती हैं कि चुंबन कितनी दूर से लिया जाय! छः इंच का फासला हो कि चार इंच का फासला हो! कि कितने इंच के फासले से चुम्बन श्लील होता है और कितने इंच के फासले पर अश्लील हो जाता है! लेकिन छुरा भोंका जाये फिल्म में,तो अश्लील नही होता! कोई नहीँ कहता कि छः इंच दूर रहे छुरा !
यह बहुत विचार की बात है कि क्या कठिनाई है।चुम्बन में ऎसा क्या पाप है,जो छुरा भोंकने में नहीं है? लेकिन चुम्बन जीवन का साथी है और छुरा मृत्यु का।छुरे पर किसी को एतराज नहीं है।हम सब आत्मघाती है।हम सब हत्यारे है।लेकिन प्रेम के हम सब दुश्मन हैं ! यह दुश्मनी क्यों है? इसको अगर हम बहुत गहरे में खोजने जायें तो हमारा जीवन के प्रति सम्मान का भाव नहीं है।

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