बेरोजगारी एक ऐसी स्थिति है जब व्यक्ति अपनी जीविका के उपार्जन के लिए काम करने की इच्छा और योग्यता रखते हुए भी काम प्राप्त नहीं कर पाता। भारत में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है, जो शहरो और गांवो में समान रूप से व्याप्त है। यह एक सामाजिक-आर्थिक समस्या है, जो आधुनिक युग की देन है। केंद्र सरकार की ओर से जारी आंकड़ों में कहा गया है कि देश की आबादी के लगभग ११ फीसदी यानि १२ करोड़ लोगों को नौकरियों की तलाश है। सबसे चिंता की बात यह है कि इनमें पढ़े-लिखे युवाओं की तादाद ही सबसे ज्यादा है। बेरोजगारों में २५ फीसदी २० से २४ आयुवर्ग के हैं, जबकि २५ से २९ वर्ष की उम्र वाले युवकों की तादाद १७ फीसदी है। २० साल से ज्यादा उम्र के १४.३० करोड़ युवाओं को नौकरी की तलाश है। विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार बढ़ता बेरोजगारी का यह आंकड़ा सरकार के लिए गहरी चिंता का विषय है।
    वर्ष २०११ की जनगणना के आधार पर केंद्र सरकार की ओर से हाल में जारी इन आंकड़ों में महिला बेरोजगारी का पहलू भी सामने आया है। नौकरी की तलाश करने वालों में लगभग आधी महिलाएं शामिल हैं। इससे यह मिथक भी टूटा है कि महिलाएं नौकरी की बजाय घरेलू कामकाज को ज्यादा तरजीह देती हैं। इनमें कहा गया है कि बेरोजगारों में १०वीं या १२वीं तक पढ़े युवाओं की तादाद १५ फीसदी है। यह तादाद लगभग २.७० करोड़ है। तकनीकी शिक्षा हासिल करने वाले १६ फीसदी युवा भी बेरोजागारों की कतार में हैं। इससे साफ है कि देश के तकनीकी संस्थानों और उद्योग जगत में और बेहतर तालमेल जरूरी है।
    इन आंकड़ों से साफ है कि पढ़े-लिखे युवा छोटी-मोटी नौकरियां करने की बजाय बेहतर मौके की तलाश करते रहते हैं। बेरोजगार युवाओं में लगभग आधे लोग ऐसे हैं जो साल में छह महीने या उससे कम कोई छोटा-मोटा काम करते हैं। लेकिन उनको स्थायी नौकरी की तलाश है। कुल बेरोजगारों में ऐसे लोगों की तादाद लगभग ३४ फीसदी यानि १.१९ करोड़ है। वर्ष २००१ से २०११ के दौरान १५ से २४ वर्ष के युवाओं की आबादी में दोगुनी से ज्यादा वृद्धि हुई है, लेकिन दूसरी ओर उनमें बेरोजगारी की दर १७.६ फीसदी से बढ़ कर २० फीसदी तक पहुंच गई है। वर्ष २००१ में जहां ३.३५ करोड़ युवा बेरोजगार थे वहीं २०११ में यह तादाद ४.६९ करोड़ पहुंच गई थी। वर्ष २००१ में युवाओं की आबादी एक करोड़ थी जो २०११ में २.३२ करोड़ हो गई यानि इसमें दोगुना से ज्यादा वृद्धि दर्ज हुई। इसके मुकाबले इस दौरान देश में कुल आबादी में १७.७१ फीसदी वृद्धि दर्ज हुई। इन आंकड़ों से साफ है कि युवाओं की तादाद जहां तेजी से बढ़ रही है वहीं उनके लिए उस अनुपात में नौकरियां नहीं बढ़ रही हैं।
    बेरोजगारी बढ़ने का एक महत्वसपूर्ण करण देश की राजनीति का भी योगदान रहा है। भारत की असंवेदनशील राजनीति को आरोप-प्रत्यारोप के अलावा अन्य किसी विषय पर विचार करने का समय ही नहीं है। देश का एक इतना बड़ा तबका शिक्षित होते हुए भी आज बेरोजगार है, इसका कारण आपस मे राजनीति झडप है जो समय के साथ रोजगार के अवसर नही मुहैया करा रही। सरकारी न्यूमक्तियो पर भी हमारी भारतीय राजनेता अपने राजनीति दाव खेलने से बाज नही आते। जो भारत की विकासशीलता में भी बाधा बना हुआ है। यहां बेरोजगारी की स्थिति किसी महामारी से कम नहीं है। देश के शीर्ष अर्थशास्त्रियों ने भी माना है कि देश में बढ़ती गरीबी युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी का ही नतीजा है। यदि भारत को आर्थिक मजबूती देनी है तो हमारे सरकार को कहीं से भी भारतीय युवाओं को रोजगार मुहैया कराना होगा न की यहां पर राजनीति करनी होगी। कुल मिलाकर सभी को शिक्षा के प्रति अपनी झूठी शान को हटाकर जमीनी स्तर पर कार्य करना होगा, और सरकार को शिक्षा और रोजगार अवसरो पर राजनीति न करके देश के बेरोजगार युवाओ और शिक्षा प्रणली के बारे सोचना होगा तभी जाकर देश का इतना बड़ा तबका पूर्ण रूप से साक्षर होगा व उसे रोजगार के बेहतर अवसर भी प्राप्त होंगे।

एक टिप्पणी भेजें

 
Top